प्रश्न अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए −
1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर
मीठी वाणी बोलने से औरों के मन से क्रोध और घृणा के भाव नष्ट हो जाते हैं जिससे उन्हें सुख प्राप्त होता है। इसके साथ ही हमारे मन के अहंकार भी नाश होता है और हमारे ह्रदय को शान्ति मिलती है जिससे तन को शीतलता प्राप्त होती है।
2. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
यहाँ दीपक का मतलब भक्तिरूपी ज्ञान तथा अन्धकार का मतलब अज्ञानता से है। जिस प्रकार दीपक के जलने अन्धकार समाप्त हो जाता है ठीक उसी प्रकार जब ज्ञान का प्रकाश हृदय में जलता है तब मन के सारे विकार अर्थात भ्रम, संशय का नाश हो जाता है।
3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर
हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है। हम उसे मंदिर, मस्जिदों में ढूंढ़ते हैं जबकि वह सब ओर व्याप्त है। इस कारण हम ईश्वर को नहीं देख पाते हैं।
4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ 'सोना' और 'जागना' किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि के अनुसार संसार में वो लोग सुखी हैं, जो सांसारिक सुखों का भोग करते हैं और दुखी वे हैं, जो ईश्वर का ध्यान लगाकर जागते रहते हैं।
यहाँ 'सोना' अज्ञानता का और 'जागना' ज्ञान का प्रतीक है।
जो लोग संसार में उपलब्ध सुख-सुविधाओं को ही वास्तविक सुख समझते हैं वे अज्ञानी हैं और सोये हुए हैं| वास्तविक ज्ञान ईश्वर को जनाना है क्योंकि वह अनश्वर है| जो यह काम कर रहा है वह जाग रहा है|
5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने बताया है कि हमें अपने आसपास निंदक रखने चाहिए ताकि वे हमें हमारी बुराइयों से अवगत करा सके और हम उन बुराइयों को अपने अंदर से दूर कर सकें। इससे हम अपने स्वभाव को बिना पानी और साबुन के स्वच्छ और निर्मल बना पाएँगें|
6. 'ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई' −इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर
इस पंक्ति में कवि यह कहना चाहते हैं कि जिस व्यक्ति ने ईश्वर का एक अक्षर भी पढ़ लिया है, वही वास्तविक ज्ञानी है| ईश्वर ही एकमात्र सत्य है और उसे जानेवाला ही सच्चे अर्थों में ज्ञानी है|
7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कबीर की साखियाँ सधुक्कड़ी भाषा में लिखी हुई हैं। इनकी साखियाँ जनमानस को जीने का कला सिखाती हैं। इन्होनें अवधी, पंजाबी, ब्रज, राजस्थानी आदि भाषाओं का मिश्रण प्रयोग किया है| तद्भव तथा देशी शब्द का अनूठा मेल भी है| जनसामान्य की बोलचाल और सहज भाषा का प्रयोग किया गया है|
(ख) भाव स्पष्ट कीजिए -
1. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
उत्तर
इस पंक्ति का भाव है कि किसी व्यक्ति के शरीर में अगर बिछड़ने का साँप बस जाता है, तो उस पर कोई उपाय या मंत्र का असर नहीं होता है। वह मिलने के लिए तड़पता ही रहता है| अर्थात
2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।
उत्तर
इस पंक्ति में कबीर कहते हैं कि कस्तूरी हिरण की नाभि में होती है परन्तु हिरण इस बात से अनजान उस सुगंध के स्थान का पता लगाने के लिए जंगल में घूमता रहता है। इसी प्रकार ईश्वर भी मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं परन्तु मनुष्य अज्ञानता के कारण उन्हें ना देखकर विभिन्न धार्मिक जगह पर ढूँढता रहता है|
3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
उत्तर
इस पंक्ति में कबीर कहते हैं कि जबतक उनके हृदय में मैं यानी अहंकार था तब तक उन्हें ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी| जब उन्हें ईश्वर की प्राप्ति हुई तब उनके अंदर का अहंकार समाप्त हो गया|
4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
उत्तर
कबीर के अनुसार किताबी और शास्त्र पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता है यानी वास्तविक ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाटा है| ईश्वर को जान लेने वाला ही सच्चा ज्ञानी है|
भाषा अध्यन
1. पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए।
उदाहरण − जिवै - जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।
उत्तर
जिवै - जीना
औरन - औरों को
माँहि - भीतर
देख्या - देखा
भुवंगम - साँप
नेड़ा - निकट
आँगणि - आँगन
साबण - साबुन
मुवा - मरा
पीव - प्रेम
जालौं - जलाऊँ
तास - उस
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